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ग़ज़ल
सरापा रेहन-ए-इश्क़-ओ-ना-गुज़ीर-ए-उल्फ़त-ए-हस्ती
'इबादत बर्क़ की करता हूँ और अफ़्सोस हासिल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बे-मुरव्वत बेवफ़ा ना-मेहरबाँ ना-आश्ना
मेरे क़ातिल मेरे हासिद मेरे दुश्मन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
गवाही देगा इक दिन ख़ुद मिरा मुंसिफ़ मिरे हक़ में
धरी रह जाएँगी सारी दलीलें मिरे हासिद की
इक़बाल साजिद
ग़ज़ल
फेंक देने की कोई चीज़ नहीं फ़ज़्ल-ओ-कमाल
वर्ना हासिद तिरी ख़ातिर से मैं ये भी कर लूँ
शिबली नोमानी
ग़ज़ल
हासिद तो है क्या चीज़ करे क़स्द जो 'इंशा'
तू तोड़ दे झट बल्ग़म-ए-बाऊर की गर्दन
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
हैं कामयाबी पे हासिद शिकस्त पर बरहम
बताओ ऐसे मिज़ाजों का क्या किया जाए
सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
ग़ज़ल
पढ़ी ऐ 'बज़्म' जब मैं ने ग़ज़ल कट कट गए हासिद
रही हर मा'रका में तेज़ शमशीर-ए-ज़बाँ मेरी
आशिक़ हुसैन बज़्म आफंदी
ग़ज़ल
हासिद अरे बुज़दिल अरे शातिर अरे ज़ालिम
हासिल तुझे तस्कीन-ए-दिली हो भी तो कब हो