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ग़ज़ल
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
सज्दों की रस्म-ए-कोहन को होश गँवा के भूल जा
संग-ए-दर-ए-हबीब पर सर को झुका के भूल जा
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ज़ेहन मुसलसल क़िस्से सोचें होंठ मुसलसल ज़िक्र करें
सुब्ह तलक ज़िंदा रहना है कहीं कहानी कम न पड़े
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
दुख़्तर-ए-रज़ पे गिरें मस्त पतंगों की तरह
शम-ए-महफ़िल हो ये लख़्त-ए-जिगर-ए-जाम-ए-शराब