aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ होआगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही
बेदार कर के तेरे बदन की ख़ुद-आगहीतेरे बदन की उम्र घटाता रहा हूँ मैं
जब इश्क़ सिखाता है आदाब-ए-ख़ुद-आगाहीखुलते हैं ग़ुलामों पर असरार-ए-शहंशाही
आगही दाम-ए-शुनीदन जिस क़दर चाहे बिछाएमुद्दआ अन्क़ा है अपने आलम-ए-तक़रीर का
है अजब कुछ मुआ'मला दरपेशअक़्ल को आगही से ख़तरा है
हूँ इस कूचे के हर ज़र्रे से आगाहइधर से मुद्दतों आया गया हूँ
अच्छी भली थी दुनिया गुज़ारे के वास्तेउलझे हुए हैं अपनी ही ख़ुद-आगही से हम
आगाह अपनी मौत से कोई बशर नहींसामान सौ बरस का है पल की ख़बर नहीं
साक़ी-ब-जल्वा दुश्मन-ए-ईमान-ओ-आगहीमुतरिब ब-नग़्मा रहज़न-ए-तम्कीन-ओ-होश है
तवहहुम की सियह शब को किरन से चाक कर के आगही हर एक आँगन में नया सूरज उतारेमगर अफ़्सोस ये सच है वो शब थी और ये सुरज है ये सब को मान जाने में अभी कुछ दिन लगेंगे
ग़म-ए-अंदेशा-हा-ए-ज़िंदगी क्यातपिश से आगही की जल रहा हूँ
जिन को दौलत हक़ीर लगती हैउफ़! वो कितने अमीर होते हैं
आशोब-ए-आगही की शब-ए-बे-कनार मेंतेरे लिए 'जमील' कोई सोचता तो है
ख़ुदा ने क्यूँ दिल-ए-दर्द-आश्ना दिया है मुझेइस आगही ने तो पागल बना दिया है मुझे
आगाह हूँ मैं मंज़िल-ए-मक़्सूद से मगरकिस सम्त जा रहा हूँ मुझे कुछ नहीं पता
जाने बस्ती में जंगल हो या जंगल में बस्ती होहै कैसी कुछ ना-आगाही आओ चलो नागाह चलें
हसरत है इस के देखने की दिल में बे-क़यासअग़्लब कि मेरी आँखें रहें बाज़ मेरे बा'द
जहल को आगही बनाते हुएमिल गया रौशनी बनाते हुए
शुऊ'र एक शुऊ'र-ए-फ़रेब है सो तो हैग़रज़ कि आगही ना-आगही को छोड़ दिया
आगही ज़ख़्म-ए-नज़ारा न बनी थी जब तकमैं ने हर शख़्स को महबूब-ए-नज़र जाना था
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