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ग़ज़ल
तुम अपने होंठ आईने में देखो और फिर सोचो
कि हम सिर्फ़ एक बोसे पर क़नाअ'त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
दिल अपना बेचता हूँ वाजिबी दाम उस के दो बोसे
जो क़ीमत दो तो लो क़ीमत न दी जाए तो रहने दो