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ग़ज़ल
अबलक़-ए-चश्म-ए-सनम किस नाज़ से गर्दिश में है
ख़ूब कावे होते हैं रहवार आँखें हो गईं
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
नक़्श उस का भी किया दौर-ए-फ़लक ने बातिल
थी जो कावे के अलम से बंधी इक़बाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बातें करनी पड़ती हैं दीवार पे बैठे कव्वे से
इस चिड़िया से सारे दिन का क़िस्सा कहना पड़ता है
अफ़ज़ाल फ़िरदौस
ग़ज़ल
क़ुबा-ए-ज़र्द-ओ-सुर्ख़ का ये इम्तिज़ाज अल-अमाँ
जमाल को वो ले गया परे हद-ए-कमाल तक
अज़ीम हैदर सय्यद
ग़ज़ल
नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर
नज़र आते हैं मीना-ए-मय-ए-गुल-रंग सीने पर
सय्यद अाग़ा अली महर
ग़ज़ल
शम्ओं का आख़िर हाल ये पहुँचा सब्र पड़ा परवानों का
कव्वे उठा के ले गए दिन को पाई सज़ा सरताबी की
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
बुलबुलें है बे-सुरी ख़बरें ये किस ने हैं गढ़ी
किस ने कव्वे को दिया है मर्तबा फ़नकार का
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
मेरी दुनिया में फ़क़त तुम हो तुम्हारे ग़म हैं
जैसे कव्वे की कहानी में हैं कंकर पानी