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ग़ज़ल
ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं