aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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बस इक निगाह से लुटता है क़ाफ़िला दिल कासो रह-रवान-ए-तमन्ना भी डर के देखते हैं
इक 'उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूमऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ
ये मुझे चैन क्यूँ नहीं पड़ताएक ही शख़्स था जहान में क्या
आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों परक्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें
बे-वक़्त अगर जाऊँगा सब चौंक पड़ेंगेइक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिनदेखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के
नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हमबिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आयाबात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आयाजाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया
अगर खो गया इक नशेमन तो क्या ग़ममक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुग़ाँ और भी हैं
मौत का एक दिन मुअ'य्यन हैनींद क्यूँ रात भर नहीं आती
आह को चाहिए इक उम्र असर होते तककौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक
आज तक नज़रों में है वो सोहबत-ए-राज़-ओ-नियाज़अपना जाना याद है तेरा बुलाना याद है
इक महक सम्त-ए-दिल से आई थीमैं ये समझा तिरी सवारी है
वो नए गिले वो शिकायतें वो मज़े मज़े की हिकायतेंवो हर एक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो
क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहोकहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले
एक ही हादसा तो है और वो ये कि आज तकबात नहीं कही गई बात नहीं सुनी गई
सब से नज़र बचा के वो मुझ को कुछ ऐसे देखताएक दफ़'अ तो रुक गई गर्दिश-ए-माह-ओ-साल भी
बज़्म-ए-जानाँ में नशिस्तें नहीं होतीं मख़्सूसजो भी इक बार जहाँ बैठ गया बैठ गया
हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहींइक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे
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