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ग़ज़ल
यही शैख़-ए-हरम है जो चुरा कर बेच खाता है
गलीम-ए-बूज़र ओ दलक़-ए-उवेस ओ चादर-ए-ज़हरा
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दुश्मन-ए-अहल-ए-मुरव्वत है वो बेगाना-ए-उन्स
शक्ल परियों की है ख़ू भी नहीं इंसानों की
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
सूफ़ी ये सहव महव हुए सद्द-ए-बाब-ए-उंस
क्या इम्बिसात कार-गह-ए-हसत-ओ-बूद में
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है
मज़ा दामान-ए-मादर का है इस मिट्टी के दामन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
'वहशत' को रहा उन्स जो यूँ फ़न्न-ए-सुख़न से
ये शाख़-ए-हुनर फूलती-फलती ही रहेगी
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
ज़बाँ से कहने से हासिल कि तुझ से उन्स है मुझ को
समझता है मिरा दिल ख़ूब इशारे तैरे चितवन के
रंजूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
उन्स अपने में कहीं पाया न बेगाने में था
क्या नशा है सारा आलम एक पैमाने में था
आग़ा शाइर क़ज़लबाश
ग़ज़ल
मौक़ूफ़ कब है जिन्न-ओ-इंस-ओ-मलाइका पर
ताइर भी नाम लेते हैं सुब्ह-ओ-शाम तेरा