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ग़ज़ल
ज़ख़्म सिलवाने से मुझ पर चारा-जुई का है तान
ग़ैर समझा है कि लज़्ज़त ज़ख़्म-ए-सोज़न में नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल-आज़ारी ने तेरी कर दिया बिल्कुल मुझे बे-दिल
न कर अब मेरी दिल-जूई कि दिल-जूई से क्या हासिल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
हमें ऐ दोस्तो चुप-चाप मर जाना भी आता है
तड़प कर इक ज़रा दिल-जूई-ए-सय्याद करते हैं
सरस्वती सरन कैफ़
ग़ज़ल
आप से मुमकिन है दिल-जूई यज़्दाँ की ये रीत नहीं
जिस को सुन कर चुप रहना है उस से क्या फ़रियाद करें
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
हर आन तसल्ली है हर लहज़ा तशफ़्फ़ी है
हर वक़्त है दिल-जूई हर दम हैं मुदारातें
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
जंग-जूई क्या कहूँ उस की कि कल-परसों में आह
सुल्ह टुक होने न पाई थी कि झगड़ा पड़ गया