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ग़ज़ल
बैठे हैं अपनी सीट पर कैसे भगाएँ मास्टर
आए हैं दे के फ़ीस हम कोई हमें भगाए क्यों
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
ग़ज़ल
क्या हिना ख़ूँ-रेज़ निकली हाए पिस जाने के बाद
बन गई तलवार उन के हाथ में आने के बाद
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
'रम्ज़' दे जाए तो क्या रंग कोई मेरा लहू
'रम्ज़' पिस जाए तो किया बर्ग-ए-हिना उस के लिए
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
ऐसा तू हमें पीस कि हों आँखों का सुर्मा
ऐ चर्ख़ तुझे जौर भी करना नहीं आता
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
मिल गया ख़ाक में पिस पिस के हसीनों पर मैं
क़ब्र पर बोएँ कोई चीज़ हिना पैदा हो
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
फ़लक मेरी तरह आख़िर तुझे भी पीस डालेगा
उड़ेगा ऐ हुमा इक रोज़ गर्द-ए-उस्तुख़्वाँ हो कर