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ग़ज़ल
तिरी तक़लीद से कब्क-ए-दरी ने ठोकरें खाईं
चला जब जानवर इंसाँ की चाल उस का चलन बिगड़ा
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
इदरीस बाबर
ग़ज़ल
कुब्क-ए-दरी के लाख क़फ़स हों जहाँ धरे
दिखला के उन को शोख़ी-ए-रफ़्तार मार डाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अब ख़याल उस का वहाँ आँखों में फिरता है मिरी
कोई फिरता था जहाँ कब्क-ए-दरी की सूरत
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
केक बिस्कुट खाएँगे उल्लू-के-पट्ठे रात दिन
और शरीफ़ों के लिए आटा गिराँ हो जाएगा
हुसैन मीर काश्मीरी
ग़ज़ल
क़ुबा-ए-ज़र्द-ओ-सुर्ख़ का ये इम्तिज़ाज अल-अमाँ
जमाल को वो ले गया परे हद-ए-कमाल तक
अज़ीम हैदर सय्यद
ग़ज़ल
नहीं दो क़ुब्बा-ए-पिस्तान शोख़-ओ-शंग सीने पर
नज़र आते हैं मीना-ए-मय-ए-गुल-रंग सीने पर
सय्यद अाग़ा अली महर
ग़ज़ल
जाओ जो चमन को तो करे फ़र्श-ए-रह-ए-नाज़
बुलबुल जिगर-ओ-फ़ाख़ता दिल कब्क-ए-दरी आँख
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़ज़ल
उस में ताऊस-ए-चमन को हुई या कब्क-ए-दरी
ऐ परी-ज़ाद तिरे कुश्ता-ए-रफ़्तार हैं सब