आपकी खोज से संबंधित
परिणाम ".rafe"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम ".rafe"
ग़ज़ल
अब न है फ़िक्र-ए-हिफ़ाज़त और न ज़ीक़-ए-रफ़-ए-कार
देने वाले ने दिया और मेरी ख़्वाहिश भर दिया
आरज़ू लखनवी
ग़ज़ल
तुझ को जब तन्हा कभी पाना तो अज़-राह-ए-लिहाज़
हाल-ए-दिल बातों ही बातों में जताना याद है
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
उस के ही बाज़ुओं में और उस को ही सोचते रहे
जिस्म की ख़्वाहिशों पे थे रूह के और जाल भी