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ग़ज़ल
मिरी दास्ताँ का उरूज था तिरी नर्म पलकों की छाँव में
मिरे साथ था तुझे जागना तिरी आँख कैसे झपक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
इलाज अपना कराते फिर रहे हो जाने किस किस से
मोहब्बत कर के देखो ना मोहब्बत क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
इज्ज़ से और बढ़ गई बरहमी-ए-मिज़ाज-ए-दोस्त
अब वो करे इलाज-ए-दोस्त जिस की समझ में आ सके
हफ़ीज़ जालंधरी
ग़ज़ल
बशीर बद्र
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़न से निकाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँड लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है
हस्तीमल हस्ती
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द-ए-दिल तुम से मसीहा हो नहीं सकता
तुम अच्छा कर नहीं सकते मैं अच्छा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
सुना है बे-नियाज़ी ही इलाज-ए-ना-उमीदी है
ये नुस्ख़ा भी कोई दिन आज़मा कर देख लेता हूँ
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
उरूज-ए-आदम-ए-ख़ाकी से अंजुम सहमे जाते हैं
कि ये टूटा हुआ तारा मह-ए-कामिल न बन जाए