aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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सुना दें इस्मत-ए-मरियम का क़िस्सापर अब इस बाब को वा क्यों करें हम
आशिक़ सा तो सादा कोई और न होगा दुनिया मेंजी के ज़ियाँ को इश्क़ में उस के अपना वारा जाने है
रंग हर रंग में है दाद-तलबख़ून थूकूँ तो वाह-वा कीजे
दिल हुआ कशमकश-ए-चारा-ए-ज़हमत में तमाममिट गया घिसने में इस उक़दे का वा हो जाना
आज लब-ए-गुहर-फ़िशाँ आप ने वा नहीं कियातज़्किरा-ए-ख़जिस्ता-ए-आब-ओ-हवा नहीं किया
वा कर दिए हैं शौक़ ने बंद-ए-नक़ाब-ए-हुस्नग़ैर-अज़-निगाह अब कोई हाइल नहीं रहा
मर चुक कहीं कि तू ग़म-ए-हिज्राँ से छूट जाएकहते तो हैं भले की व-लेकिन बुरी तरह
ख़ाक-बाज़ी-ए-उम्मीद कार-ख़ाना-ए-तिफ़्लीयास को दो-आलम से लब-ब-ख़ंदा वा पाया
इतना हैराँ हो मिरी बे-तलबी के आगेवा क़फ़स में कोई दर ख़ुद मिरा सय्याद करे
हर चंद इख़्तिलाफ़ के पहलू हज़ार थेवा कर सका मगर लब-ए-गोया न तू न मैं
दिखाई दूँ भी तो कैसे सुनाई दूँ भी तो क्यूँवरा-ए-नक़्श-ओ-नवा हूँ फ़ना के साथ हूँ मैं
ऐ 'हफ़ीज़' आह आह पर आख़िरक्या कहें दोस्त वाह वा के सिवा
वा-हसरता कि यार ने खींचा सितम से हाथहम को हरीस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार देख कर
ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोईहो देखना तो दीदा-ए-दिल वा करे कोई
बाद यक-उम्र-ए-वरा' बार तो देता बारेकाश रिज़वाँ ही दर-ए-यार का दरबाँ होता
मिरा ग़ुंचा-ए-दिल है वो दिल गिरफ़्ताकि जिस को किसू ने कभू वा न देखा
वो ग़ुंचा यकजा है चूँकि वरा-ए-फ़िक्र-ओ-ख़यालपलक न झपकें तो दिखलाऊँ पत्ती पत्ती अभी
ज़ेहन की खिड़की खुली दिल का दरीचा वा हुआतब जहाँ के दर्द से रिश्ता मिरा गहरा हुआ
वामाँदगाँ पे तंग हुई क्यूँ तिरी ज़मींदरवाज़ा आसमान का वा क्यूँ नहीं हुआ
ज़िंदगी मिलती जो सौ बार हमें दुनिया मेंहम तो हर बात इसे आप पे वारा करते
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