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ग़ज़ल
मैं ज़-ख़ुद रफ़्ता हुआ सुनते ही जाने की ख़बर
पहले मैं आप में आ लूँ तो चले जाइएगा
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
गुम हो के हर जगह हैं ज़-ख़ुद रफ़्तगान-ए-इश्क़
उन की भी अहल-ए-कश्फ़-ओ-करामात ज़ात है
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हिर फिर के उन की आँख 'अदू से लड़े न क्यूँ
फ़ित्ना को करती है निगह-ए-फ़ित्ना-ज़ा पसंद
बेख़ुद देहलवी
ग़ज़ल
ज़िया जालंधरी
ग़ज़ल
इलाही किस तरह अक़्ल ओ जुनूँ को एक जा कर लूँ
कि मंशा-ए-निगाह-ए-इश्वा-ज़ा यूँ भी है और यूँ भी
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
है तो गर्दिश चर्ख़ की भी फ़ित्ना-अंगेज़ी में ताक़
तेरी चश्म-ए-फ़ित्ना-ज़ा की लेक गर्दिश और है