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ग़ज़ल
ग़ालिबन मेरे अलावा कोई गुज़रा भी नहीं
तेरी मंज़िल में कहीं नक़्श-ए-कफ़-ए-पा भी नहीं
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
पहलू में इक नई सी ख़लिश पा रहा हूँ मैं
इस वक़्त ग़ालिबन उन्हें याद आ रहा हूँ मैं