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ग़ज़ल
गलियारों में मध टपकाता हुआ कुटियों की सुधा नहलाता हुआ
आँगन में नयन मटकाता हुआ है चाँद औरोनी पर लटका
बेकल उत्साही
ग़ज़ल
नहीं बे-हिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर न हो
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल
न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
'फ़ैज़' उन को है तक़ाज़ा-ए-वफ़ा हम से जिन्हें
आश्ना के नाम से प्यारा है बेगाने का नाम