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ग़ज़ल
रंग हवा से यूँ टपके है जैसे शराब चुवाते हैं
आगे हो मय-ख़ाने के निकलो अहद-ए-बादा-गुसाराँ है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
हर-बुन-ए-मू से दम-ए-ज़िक्र न टपके ख़ूँ नाब
हमज़ा का क़िस्सा हुआ इश्क़ का चर्चा न हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
आए थे बिखेरे ज़ुल्फ़ों को इक रोज़ हमारे मरक़द पर
दो अश्क तो टपके आँखों से दो फूल चढ़ाना भूल गए
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
अरक़ जब उस परी के चेहरा-ए-पुर-नूर से टपके
ख़जिल हो गुल से शबनम जूँ लहू नासूर से टपके
आरिफ़ुद्दीन आजिज़
ग़ज़ल
मैं कुश्ता हूँ किस चश्म-ए-सियह-मस्त का या रब
टपके है जो मस्ती मिरी तुर्बत के शजर से
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
अश्क जब टपके किसी बेकस की आँखों से 'नदीम'
यूँ लगा तूफ़ान की ज़द में समुंदर आ गया
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
क्या ज़िक्र है आँसू का ज़ालिम मिरी आँखों से
ख़ूँ-नाब ही टपके है यक ज़ात जुदाई में
जोशिश अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
पानी भर आए मिस्रियों के मुँह में वक़्त-ए-दीद
शीरीं की राल टपके जो वो देख पाए होंठ