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ग़ज़ल
सारे रिंद औबाश जहाँ के तुझ से सुजूद में रहते हैं
बाँके टेढ़े तिरछे तीखे सब का तुझ को इमाम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
टेढ़े न हो हम से रखो इख़्लास तो सीधा
तुम प्यार से रुकते हो तो लो प्यार भी छोड़ा
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
हैं खोटी निय्यतें जिन की वो कुछ भी पा नहीं सकते
निशाने क्या लगें उन के जो टेढ़े तीर वाले हैं
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
टेढ़े-मेढ़े आले ले के जिस्म पे टूट पड़े हैं
शायद जान गए हैं हुस्न की मैं पूजा करता था
ओसामा ज़ाकिर
ग़ज़ल
आप हो जाएँगे सीधे कहीं दिन हों सीधे
वो भी टेढ़े हैं जो टेढ़ा है मुक़द्दर हम से
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
हुई जिन से तवक़्क़ो' ख़स्तगी की दाद पाने की
वो हम से भी ज़ियादा ख़स्ता-ए-तेग़-ए-सितम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बशीर दादा
ग़ज़ल
जामुनों वाले देस के लड़के, टेढ़े उन के तौर
पँख टटोलें तूतियों के वो, फिर कर हर हर डाल