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ग़ज़ल
बिछड़ने वाले बिछड़ते टाइम न कह सके कुछ न सुन सके कुछ
बस एक फोटो में क़ैद कर ली गई बला की हसीं उदासी
आयुष चराग़
ग़ज़ल
निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन
बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल ने घंटों की धड़कन लम्हों में पूरी कर डाली
वैसे अनजानी लड़की ने बस का टाइम पूछा था
फ़ज़्ल ताबिश
ग़ज़ल
मिरे औक़ात-ए-गिर्या टाइम टेबल पर मुक़र्रर हैं
ये बंदा इश्क़ के बारे में भी अंग्रेज़ है साक़ी
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
ग़ज़ल
कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़
कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले