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ग़ज़ल
तिश्ना-लबों की जान है शमशीर-ए-आब-दार
ख़्वाहिश उन्हें तो कौसर-ओ-तसनीम की नहीं
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
तेरे दाँतों के तसव्वुर से न था गर आब-दार
जो बहा आँसू वो दुर्र-ए-बे-बहा क्यूँकर हुआ
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
दरिया में उस की तीर-ए-मिज़ा का पड़े जो 'अक्स
सुराख़ हो हर इक गुहर-ए-आब-दार में
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
देख कर दस्त-ए-सितम में तेरी तेग़-ए-आबदार
मेरे हर ज़ख़्म-ए-जिगर के मुँह में आब आ जाएगा
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
लख़्त-ए-दिल याक़ूत में आँसू हैं मोती आब-दार
आओ देखो जौहरी बाज़ार आँखें हो गईं