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ग़ज़ल
ये नहर-ए-आब भी उस की है मुल्क-ए-शाम उस का
जो हश्र मुझ पे बपा है वो एहतिमाम उस का
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
गिरा तो गिर के सर-ए-ख़ाक-ए-इब्तिज़ाल आया
मैं तेग़-ए-तेज़ था लेकिन मुझे ज़वाल आया
अफ़ज़ाल अहमद सय्यद
ग़ज़ल
'आफ़्ताब-अहमद' तिरे अंदर ख़राबी है ज़रूर
गुफ़्तुगू मोहतात सी है चाल मस्तानी नहीं
आफ़ताब अहमद शाह
ग़ज़ल
अजब इक मख़मसे में पड़ गया हूँ 'आफ़्ताब-अहमद'
कि अपना लिख नहीं सकता पराया पढ़ नहीं सकता
आफ़ताब अहमद शाह
ग़ज़ल
लो साहब आफ़्ताब कहाँ और हम कहाँ
अहमक़ बनें हम इस को न समझें अगर ग़लत
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
जागती आँखों के सहराओं में ख़्वाबों के सराब
दूर तक बिखरे हुए पुर-ख़ार राहों में गुलाब