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ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब
मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशाँ होना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
अल्लाह रे तेरी तुंदी-ए-ख़ू जिस के बीम से
अजज़ा-ए-नाला दिल में मिरे रिज़्क़-ए-हम हुए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
नज़र में है हमारी जादा-ए-राह-ए-फ़ना 'ग़ालिब'
कि ये शीराज़ा है आलम के अज्ज़ा-ए-परेशाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
शौक़ है सामाँ-तराज़-ए-नाज़िश-ए-अरबाब-ए-अज्ज़
ज़र्रा सहरा-दस्त-गाह ओ क़तरा दरिया-आश्ना
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
यक क़दम वहशत से दर्स-ए-दफ़्तर-ए-इम्काँ खुला
जादा अजज़ा-ए-दो-आलम दश्त का शीराज़ा था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ये आलम क्या है इक मजमूआ' है नाचीज़ ज़र्रों का
ये दुनिया क्या है इक तरकीब अज्ज़ा-ए-परेशाँ की