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ग़ज़ल
वो मेरा वहम-ए-नज़र था कि तेरा अक्स-ए-जमील
वो कौन था कि जो मंज़र के दरमियाँ गुज़रा
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
किस की चीख़ों से लरज़ते हैं दर-ओ-दीवार सब
कौन है जो रात भर रोता है तेरे शहर में
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
ग़ज़ल
पड़ा था अक्स-ए-रू-ए-नाज़नीं अर्सा हुआ उस को
पर अब तक तैरता फिरता है शक्ल-ए-गुल समुंदर में
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मैं ने मंज़र ही नहीं देखे हैं पस-मंज़र भी
मुझ में अब जुरअत-ए-दीदार कहाँ से आई
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
मिरे लहू में अब इतना भी रंग क्या होता
तराज़-ए-शौक़ में अक्स-ए-रुख़-ए-निगार भी है
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
दिल है ग़मनाक तो कौनैन है मातम-ख़ाना
रोते हैं सब दर-ओ-दीवार बड़ी मुश्किल है