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ग़ज़ल
दिल पर मिरे ही शाक़ नहीं है तिरा फ़िराक़
ख़ामोश हैं चमन में अनादिल तिरे बग़ैर
नादिर शाहजहाँ पुरी
ग़ज़ल
ख़िज़ाँ और नग़्मे शादी के बहार आए तो गा लेना
ये दिन तो ऐ 'अनादिल हैं तुम्हारे शोर-ओ-शेवन के
रंजूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
ख़ुशी हो हो के ख़ुद सय्याद कहता है अनादिल से
बहार आई हुई है चहचहाए जिस का जी चाहे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
फूल काग़ज़ के हैं अब काँच के गुल-दानों में
तुम भी बाज़ार से पत्थर के अनादिल लाओ