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ग़ज़ल
ज़िंदगी की यही क़ीमत है कि अर्ज़ां हो जाओ
नग़्मा-ए-दर्द लिए मौजा-ए-ख़ुश्बू की तरह
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
यूसुफ़-ए-मिस्र-ए-मोहब्बत कैसा अर्ज़ां बिक गया
नक़्द-ए-दिल क़ीमत हुई इक बोसा बैआ'ना हुआ
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
ऐ शम्अ बचाना दामन को इस्मत से मोहब्बत अर्ज़ां है
आलूदा-नज़र परवानों के जज़्बात की निय्यत ठीक नहीं
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
जब तक अर्ज़ां है ज़माने में कबूतर का लहू
ज़ुल्म है रब्त रखूँ गर किसी शहबाज़ के साथ
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
'अक़्ल है फ़ित्ना-ए-बेदार सुला दें इस को
'इश्क़ की जिन्स-ए-गिराँ-माया को अर्ज़ां कर दें