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ग़ज़ल
तेरे बिन रात के हाथों पे ये तारों के अयाग़
ख़ूब-सूरत हैं मगर ज़हर के प्यालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
'फ़िराक़' बज़्म-ए-चराग़ाँ है महफ़िल-ए-रिंदाँ
सजे हैं पिघली हुई आग से छलकते अयाग़
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
सुनते हैं बंद फिर दर-ए-मय-ख़ाना हो गया
दूर अयाग़-ओ-शग़्ल-ए-मुल अफ़्साना हो गया