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ग़ज़ल
थकन की धूप ढली भी नहीं थी सर से अभी
अज़ाब-ए-हुक्म-ए-सफ़र मुझ पे फिर उतर आया
जावेद अकरम फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
मैं कि ख़ुद राह में भूल आई हूँ असबाब-ए-सफ़र
कोई मंज़िल का पता पूछ रहा है मुझ से