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ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
कीजे लक़ा-ए-बाख़तर-ए-बे-बक़ा को क़ैद
नजतक के सर पे गुर्ज़-ए-गराँ-बार तोड़िए
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
ये ख़िज़ाँ की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो