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ग़ज़ल
न जाँ-बाज़ों का मजमा था न मुश्ताक़ों का मेला था
ख़ुदा जाने कहाँ मरता था मैं जब तू अकेला था
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अता की नहर-ए-गुलशन उस ने अपने इश्क़-बाज़ों को
इजाज़त दी यहाँ निखरे नहाए जिस का जी चाहे
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
नज़र-बाज़ों को भी धोका हुआ फैशन के छल-बल से
वो अक्सर अच्छी ख़ासी छोकरी को छोकरा समझे