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ग़ज़ल
हुए इत्तिफ़ाक़ से गर बहम तो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अक़रिबा तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
जौन एलिया
ग़ज़ल
तुझे क्या ख़बर मिरे बे-ख़बर मिरा सिलसिला कोई और है
जो मुझी को मुझ से बहम करे वो गुरेज़-पा कोई और है
नसीर तुराबी
ग़ज़ल
जुदा थे हम तो मयस्सर थीं क़ुर्बतें कितनी
बहम हुए तो पड़ी हैं जुदाइयाँ क्या क्या
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
दीदा ओ दिल को सँभालो कि सर-ए-शाम-ए-फ़िराक़
साज़-ओ-सामान बहम पहुँचा है रुस्वाई का
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
शम् ओ परवाना न महफ़िल में हों बाहम ज़िन्हार
शम्अ'-रू ने मुझे भेजे हैं ये परवाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
मोहब्बत चाहिए बाहम हमें भी हो तुम्हें भी हो
ख़ुशी हो इस में या हो ग़म हमें भी हो तुम्हें भी हो
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
जहाँ में हो ग़म-ओ-शादी बहम हमें क्या काम
दिया है हम को ख़ुदा ने वो दिल कि शाद नहीं
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
अब ऐसे हैं कि साने' के मिज़ाज ऊपर बहम पहुँचे
जो ख़ातिर-ख़्वाह अपने हम हुए होते तो क्या होते
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
वो नज़र बहम न पहुँची कि मुहीत-ए-हुस्न करते
तिरी दीद के वसीले ख़द-ओ-ख़ाल तक न पहुँचे