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ग़ज़ल
आज की रात कोई बैरागन किसी से आँसू बदलेगी
बहते दरिया उड़ते बादल जहाँ भी हों ठहरा देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
ता'ने दे कर लोग लगाते हैं क्यूँ आग में आग
बस्ती वाले क्यूँ करते हैं बैरागन को तंग
इरफ़ाना अज़ीज़
ग़ज़ल
मन बै-रागी तन अनुरागी क़दम क़दम दुश्वारी है
जीवन जीना सहल न जानो बहुत बड़ी फ़नकारी है
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
दुनिया भर की शान-ओ-शौकत ज्यूँ की त्यूँ ही धरी रही
मेरे बै-रागी मन में जब सच आया तो झूट गया
दीप्ति मिश्रा
ग़ज़ल
बताऊँ किस हवाले से उन्हें बैराग का मतलब
जो तारे पूछते हैं रात को घर क्यूँ नहीं जाता
प्रबुद्ध सौरभ
ग़ज़ल
शायद आ पहुँचा है अहद-ए-इंतिज़ार-ए-गुफ़्तुगू
चार जानिब ख़िल्क़त-ए-लब-बस्तगाँ मौजूद है
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
ये जो लोग बनों में फिरते जोगी बै-रागी कहलाएँ
उन के हाथ अदब से चूमें उन के आगे सीस नवाएँ
अज़ीज़ हामिद मदनी
ग़ज़ल
इरफ़ान सत्तार
ग़ज़ल
'माजिद' ने बैराग लिया है कोई ऐसी बात नहीं
इधर उधर की बातें कर के लोगों को समझाया कर