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ग़ज़ल
एक इक कर के पंछी उड़ते जाएँ ठोर-ठिकानों से
भूक उड़े खलियानों में रुत बाजरे वाली भेजो नाँ
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
चले वो बाद-ए-मुराद हमदम जो बहर-ए-ग़म से निकाले बाहम
ख़ुशी के बजरे लगें किनारे इधर हमारे उधर तुम्हारे
शाद लखनवी
ग़ज़ल
बजरे लगाए लोगों ने ला के उन के बरामद होने को
अश्कों ने मेरे राह-ए-वफ़ा में आज तो वो सैलाबी की
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
आसमाँ आसमाँ पाँव धरते गए दिन गुज़रते गए
हम सितारों को बजरे में भरते गए दिन गुज़रते गए