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ग़ज़ल
किसे अपना बनाएँ कोई इस क़ाबिल नहीं मिलता
यहाँ पत्थर बहुत मिलते हैं लेकिन दिल नहीं मिलता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
अपने माशूक़ की सुनता है बुराई कोई
क्यूँ न हम बिगड़ें जो अग़्यार बनाएँ तुझ को
लाला माधव राम जौहर
ग़ज़ल
किसे दोस्त अपना बनाएँ हम किसे दिल का हाल सुनाएँ हम
सभी ग़ैर हैं सभी अजनबी तिरे गाँव में मिरे शहर में