aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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अब्र-ए-गुरेज़-पा को बरसने से क्या ग़रज़सीपी में बन न पाए गुहर तुम को इस से क्या
नश्शा शीशे में अंगड़ाई लेने लगा बज़्म-ए-रिंदाँ में साग़र खनकने लगामय-कदे पे बरसने लगीं मस्तियाँ जब घटा घिर के आई मज़ा आ गया
क्या हुआ गर नहीं बादल ये बरसने वालाये भी कुछ कम तो नहीं है जो ये आया हुआ है
फिर ख़यालों में तिरे क़ुर्ब की ख़ुश्बू जागीफिर बरसने लगी आँखें मिरी बादल की तरह
निकल गए हैं जो बादल बरसने वाले थेये शहर आब को तरसेगा चश्म-ए-तर के बग़ैर
ग़यूर दिल से न माँगी गई मुराद 'अदा'बरसने आप ही काली घटा नहीं आई
शाम होते ही बरसने लगे काले बादलसुब्ह-दम लोग दरीचों में खुले सर निकले
शबनम की तराविश से भी दुखता था दिल-ए-ज़ारघनघोर घटाओं को बरसने की पड़ी थी
फिर जिस के तसव्वुर में बरसने लगीं आँखेंवो बरहमी-ए-सोहबत-ए-शब याद रहेगी
दहकता शो'ला सा मैं एक दश्त हूँ 'पाशी'अगर घटा है तू सावन की तो बरसने आ
उस की आँखों का सावन बरसने लगाबादलों में परिंदा घिरा देख कर
कोई भरोसा नहीं अब्र के बरसने काबढ़ेगी प्यास की शिद्दत न आसमाँ देखो
मिलते हैं नज़र होश उड़ते हैं मस्ती भी बरसने लगती हैमा'लूम नहीं वो कौन सी मय आँखों से पिलाया करते हैं
मैं वही दश्त हमेशा का तरसने वालातू मगर कौन सा बादल है बरसने वाला
उस से कहियो जो ख़ुद में डूबा हैतुझ पे बादल नहीं बरसने के
फिर वो आमादा हुए मुझ पे बरसने के लिएफिर मिरे सर पे मुसीबत की घटाएँ आईं
बरसने को तो बरसता है अब्र-ए-नैसाँ भीमगर बरस न सका मेरी चश्म-ए-तर की तरह
बरसने लगती हैं आँखें हमारीतिरी गाती हैं जब मल्हार आँखें
सहरा में बगूलों की तरह नाच रहा हूँफ़ितरत से मैं बादल था बरसने के लिए था
ये जो अफ़्लाक के आँसू हैं दिखावे के हैं बसहम तो बारिश के बरसने में नहीं आएँगे
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