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ग़ज़ल
ख़ल्लाक़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ बड़ा दिल-नवाज़ है
तख़्लीक़-ए-शम्अ' होते ही परवाना बन गया
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
निगारिश मक़सद-ए-तख़लीक़-ए-बर्ग-ए-गुल पे है लेकिन
किसे है ताब-ए-नज़्ज़ारा चराग़-ए-तूर जलता है
बेबाक भोजपुरी
ग़ज़ल
क़दम क़दम में हमारे है जज़्बा-ए-तख़्लीक़
वहीं उभार दी मंज़िल जहाँ से गुज़रे हैं