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ग़ज़ल
कभी सरसब्ज़ है मंज़र कभी बे-आब-ओ-गियाह
किश्त-ए-उम्मीद में ये कैसा फ़ुसूँ दौड़ता है
सुल्तान अख़्तर
ग़ज़ल
सब ख़याल उस के लिए हैं सब सवाल उस के लिए
रख दिया हम ने हिसाब-ए-माह-ओ-साल उस के लिए
अख़्तर हुसैन जाफ़री
ग़ज़ल
गुलों में रंग नहीं मौसम-ए-बहार नहीं
मिरी हयात मगर फिर भी सोगवार नहीं
सुरय्या सुल्ताना नसीम नियाज़ी
ग़ज़ल
ज़बाँ गुल-ओ-गियाह की है शिकवा-संज-ए-बे-दिली
यही तुम्हारा बाग़ है इसी के बाग़बाँ हो तुम
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
आदमी बे-हिस-ओ-मस मैं सूरत-ए-मर्दुम गियाह
शहर में हूँ मैं इलाही या किसी जंगल में हूँ