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ग़ज़ल
तू सुख़नवर है तो कर हक़ से वफ़ा हर्फ़-ब-हर्फ़
फ़र्ज़ शा'इर का सदाक़त से निभा हर्फ़-ब-हर्फ़
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
मिट गए हाए मकीं और मकान-ए-देहली
न रहा नाम को भी नाम-ओ-निशान-ए-देहली
तफ़ज़्ज़ुल हुसैन ख़ान कौकब देहलवी
ग़ज़ल
हुस्न क्या जिस को किसी हुस्न से ख़तरा न हुआ
कौन यूसुफ़ हदफ़-ए-कैद-ए-ज़ुलेख़ा न हुआ
रशीद कौसर फ़ारूक़ी
ग़ज़ल
क्यूँ मलामत का हदफ़ गर्दिश-ए-पैमाना बने
लग़्ज़िश-ए-पा से मिरी का'बा-ओ-बुत-ख़ाना बने
अलक़मा शिबली
ग़ज़ल
मुस्तक़बिलों की गुज़रे ज़मानों की ज़द पे हूँ
मैं इस जहाँ में कितने जहानों की ज़द पे हूँ
अमीर इमाम
ग़ज़ल
मैं अपने दोस्त के पहले हदफ़ से वाक़िफ़ था
ये बे-ध्यानी नहीं मेरी, दरगुज़र लिया जाए