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ग़ज़ल
वो तो अब भी ख़्वाब है बेदार बीनाई का ख़्वाब
ज़िंदगी में ख़्वाब में उस के गुज़ार आया तो क्या
जौन एलिया
ग़ज़ल
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
सहर होने को है बेदार शबनम होती जाती है
ख़ुशी मंजुमला-ओ-अस्बाब-ए-मातम होती जाती है