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ग़ज़ल
क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ईमा है ये कि देवेंगे नौ दिन के बा'द दिल
लिख भेजे ख़त में शे'र जो बे-दिल के चार पाँच
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
मुझे राह-ए-सुख़न में ख़ौफ़-ए-गुम-राही नहीं ग़ालिब
असा-ए-ख़िज़्र-ए-सहरा-ए-सुख़न है ख़ामा बे-दिल का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ब-फैज़-ए-बे-दिली नौमीदी-ए-जावेद आसाँ है
कुशायिश को हमारा उक़्दा-ए-मुश्किल-पसंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मुतरिब-ए-दिल ने मिरे तार-ए-नफ़स से 'ग़ालिब'
साज़ पर रिश्ता पए नग़्मा-ए-'बेदिल' बाँधा
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ऐ करम न हो ग़ाफ़िल वर्ना है 'असद' बे-दिल
बे-गुहर सदफ़ गोया पुश्त-ए-चश्म-ए-नैसाँ है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
दिल-आज़ारी ने तेरी कर दिया बिल्कुल मुझे बे-दिल
न कर अब मेरी दिल-जूई कि दिल-जूई से क्या हासिल