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ग़ज़ल
हम दोस्त नहीं दुश्मन ही सही भाई न सही बेरी ही सही
हमसाए का हक़ तो दो हम को हम कुछ भी न हो हमसाए हैं
अमीर रज़ा मज़हरी
ग़ज़ल
शम्स रम्ज़ी
ग़ज़ल
इधर ग़ैरत की ख़ुश्की है न गूलर है न बेरी है
मगर जिस सम्त चमचे हैं उधर अंगूर हैं साक़ी
ज़ियाउर्रहमान आज़मी
ग़ज़ल
कोई बात ऐसी अगर हुई कि तुम्हारे जी को बुरी लगी
तो बयाँ से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो कि न याद हो
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
कहूँ किस से मैं कि क्या है शब-ए-ग़म बुरी बला है
मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता