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ग़ज़ल
न छेड़ ऐ निकहत-ए-बाद-ए-बहारी राह लग अपनी
तुझे अटखेलियाँ सूझी हैं हम बे-ज़ार बैठे हैं
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
इश्क़ रुस्वा हो चला बे-कैफ़ सा बेज़ार सा
आज उस की नर्गिस-ए-ग़म्माज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
हर इक बे-कार सी हस्ती ब-रू-ए-कार हो जाए
जुनूँ की रूह-ए-ख़्वाबीदा अगर बेदार हो जाए
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
इश्क़ से बेज़ार दिल ये चीख़ कर कहने लगा
इश्क़ छोड़ो आशिक़ों तन्हाइयाँ ही ठीक हैं