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ग़ज़ल
चमन में शोर-ओ-ग़ुल है और रंगों की हैं बरसातें
बिरज में आज है होरी कि अब मौसम बदलता है
स्वाती सानी रेशम
ग़ज़ल
उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
अगर दर्द-ए-मोहब्बत से न इंसाँ आश्ना होता
न कुछ मरने का ग़म होता न जीने का मज़ा होता
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना
अजल क्या है ख़ुमार-ए-बादा-ए-हस्ती उतर जाना
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में
कि ज़ेवर हो गया तौक़-ए-ग़ुलामी अपनी गर्दन में
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
न कोई दोस्त दुश्मन हो शरीक-ए-दर्द-ओ-ग़म मेरा
सलामत मेरी गर्दन पर रहे बार-ए-अलम मेरा
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
दिल किए तस्ख़ीर बख़्शा फ़ैज़-ए-रूहानी मुझे
हुब्ब-ए-क़ौमी हो गया नक़्श-ए-सुलैमानी मुझे
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
कभी था नाज़ ज़माने को अपने हिन्द पे भी
पर अब उरूज वो इल्म-ओ-कमाल-ओ-फ़न में नहीं
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
नर्गिस के फूलों में छुप कर परियों की आँखें रोती हैं
यूँ रात-बिरात अकेले में जाओ न उधर तन्हा तन्हा