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ग़ज़ल
बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह
जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लुटाते हैं वो दौलत हुस्न की बावर नहीं आता
हमें तो एक बोसा भी बड़ी मुश्किल से मिलता है
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
माँगूँ तो सही बोसा पर क्या है इलाज इस का
याँ होंट का हिल जाना वाँ बात का पा जाना
मीर मेहदी मजरूह
ग़ज़ल
दे के वो बोसा-ए-लब शौक़ से लें दिल मेरा
'उज़्र क्या है जो मिले माल की क़ीमत अच्छी
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
वो सीधी उल्टी इक इक मुँह में सौ सौ मुझ को कह जाना
दम-ए-बोसा वो तेरा रूठ जाना याद आता है
निज़ाम रामपुरी
ग़ज़ल
मिलता है कभी बोसा ने गाली ही पाते हैं
मुद्दत हुई कुछ हम को इनआम नहीं होता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
क़ीमत में जिंस-ए-दिल की माँगा जो 'ज़ौक़' बोसा
क्या क्या न उस ने हम को खोटी-खरी सुनाई