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ग़ज़ल
वहशत है इश्क़-ए-पर्दा-नशीं में दम-ए-बुका
मुँह ढाँकते हैं पर्दा-ए-चश्म-ए-परी से हम
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
ज़मीं पे आह-ओ-बुका और ख़ून-ए-नाहक़ भी
ज़बान-ए-ख़ल्क़ ये पूछे है क्या ख़ुदा नहीं है
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
अश्क आँखों में हैं होंटों पे बुका से पहले
क़ाफ़िला ग़म का चला बाँग-ए-दरा से पहले
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
अफ़्सोस कि सुन ही के अभी हँसते हो अफ़्सोस
तुम ने जो अगर आह-ओ-बुका को नहीं देखा
अब्दुल ग़फ़ूर नस्साख़
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
हसीर-ए-इश्क़ को कब दख़्ल इस महफ़िल में है 'कैफ़ी'
बिसात उस की फ़क़त बैन-ओ-बुका आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक है
दत्तात्रिया कैफ़ी
ग़ज़ल
अश्क आँखों में हैं होंटों पे बुका से पहले
क़ाफ़िला-ए-ग़म का चला बाँग-ए-दरा से पहले
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
लेता हूँ उस का नाम भी आह-ओ-बुका के साथ
कितना हसीन रिश्ता है मेरा ख़ुदा के साथ