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ग़ज़ल
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
ऐ रहबर-ए-कामिल चलने को तय्यार तो हूँ पर याद रहे
उस वक़्त मुझे भटका देना जब सामने मंज़िल आ जाए
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा
तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
बशीर बद्र
ग़ज़ल
कुछ तो रेत की प्यास बुझाओ जनम जनम की प्यासी है
साहिल पर चलने से पहले अपने पाँव भिगो लेना
बशीर बद्र
ग़ज़ल
कमर बाँधे हुए चलने को याँ सब यार बैठे हैं
बहुत आगे गए बाक़ी जो हैं तय्यार बैठे हैं