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ग़ज़ल
न मस्जिद है कोई न चर्च है न कोई मंदिर है
अगर घर है कहीं उस का तो तेरे दिल के अंदर है
भास्कर शुक्ला
ग़ज़ल
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
कुछ ने कहा ये चाँद है कुछ ने कहा चेहरा तिरा
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
मैं चराग़ वो भी बुझा हुआ मेरी रात कैसे चमक गई