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ग़ज़ल
मिरी दिल की तबाही की शिकायत पर कहा उस ने
तुम अपने घर की चीज़ों की हिफ़ाज़त क्यूँ नहीं करते
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
और तो मुझ को मिला क्या मिरी मेहनत का सिला
चंद सिक्के हैं मिरे हाथ में छालों की तरह
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
इलाज-ए-दर्द में भी दर्द की लज़्ज़त पे मरता हूँ
जो थे छालों में काँटे नोक-ए-सोज़न से निकाले हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अज्ञात
ग़ज़ल
किसी ऐसे शरर से फूँक अपने ख़िर्मन-ए-दिल को
कि ख़ुर्शीद-ए-क़यामत भी हो तेरे ख़ोशा-चीनों में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
दरीचों को तो देखो चिलमनों के राज़ तो समझो
उठेंगे पर्दा-हा-ए-बाम-ओ-दर आहिस्ता आहिस्ता
मुस्तफ़ा ज़ैदी
ग़ज़ल
निगाह-ए-शोख़ ओ चश्म-ए-शौक़ में दर-पर्दा छनती है
कि वो चिलमन में हैं नज़दीक हम चिलमन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
वो मुझ पे फेंकता पानी की कुल्लियाँ भर भर
मैं उस के छींटों से तो पैरहन भिगोता था