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ग़ज़ल
क्या अजब ख़्वान-ए-मुक़द्दर ही उठा कर फेंके
डाँट कर ख़्वान-ए-मुक़द्दर से उठाया हुआ शख़्स
शहज़ाद नय्यर
ग़ज़ल
हल्क़ा-ए-गेसु-ए-शब को ज़र्रा-ए-अफ़्शाँ चुनी
रात को चुन चुन के इक इक दाँत तोड़ा साँप का
रिन्द लखनवी
ग़ज़ल
जल गया आग में आप अपने मैं मानिंद-ए-चिनार
पीसते रह गए दाँत अर्रा-ओ-सोहाँ क्या क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
'हफ़ीज़' हश्र में कर ही चुका था मैं फ़रियाद
कि उस ने डाँट दिया सामने से आ के मुझे
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
न तुर्श-रू हो न खट्टे करो हमारे दाँत
मज़ा है हँस के लब-ए-शक्करीं का बोसा दो
मक़सूद अहमद नुत्क़ काकोरवी
ग़ज़ल
होंठों में दाब कर जो गिलौरी दी यार ने
क्या दाँत पीसे ग़ैरों ने क्या क्या चबाए होंठ
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
नहीं चमके ये हँसने में तुम्हारे दाँत अंजुम से
निकल आई तड़प कर बर्क़ आग़ोश-ए-तबस्सुम से
असद अली ख़ान क़लक़
ग़ज़ल
लब उस के पिस्ता ज़क़न सेब आँखें हैं बादाम
खुले जो दाँत हँसी में नज़र अनार आया