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ग़ज़ल
बहुत ग़लत है तमन्ना-ए-ख़ुद-फ़रामोशी
वफ़ूर-ए-इश्क़ में अपनी ख़बर ज़रूरी है
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
रहा करते हैं क़ैद-ए-होश में ऐ वाए-नाकामी
वो दश्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी के चक्कर याद आते हैं
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
कुंद तलवारें हुईं अहद-ए-ज़िरा-पोशी गया
जाग उठ ग़फ़लत से वक़्त-ए-ख़ुद-फ़रामोशी गया
मोहम्मद सादिक़ ज़िया
ग़ज़ल
ख़ुद-फ़रामोशी ने रक्खा है गिरफ़्तार-ए-ख़ुदी
छूटते क्यूँ छोड़ते दामन अगर अपना न हम
नातिक़ गुलावठी
ग़ज़ल
अपनी हस्ती का भी एहसास नहीं है जैसे
ख़ुद-फ़रामोशी-ए-वहशत कभी ऐसी तो न थी
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
हमें अपना मुक़द्दर अपने हाथों से बनाना है
कहाँ तक ख़ुद-फ़रामोशी फ़रेब-ए-आरज़ू कब तक
ख़लील फ़रहत करंजवी
ग़ज़ल
इश्क़ क्या है ख़ुद-फ़रामोशी मुसलसल इज़्तिराब
हुस्न क्या है जल्वा-आराई ब-अंदाज़-ए-हिजाब
सग़ीर अहमद सग़ीर अहसनी
ग़ज़ल
ख़ुद-फ़रामोशी की लज़्ज़त ना-मुकम्मल रह गई
बावजूद-ए-बे-ख़ुदी तेरा ख़याल आ ही गया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी
ग़ज़ल
अजब सी ख़ुद फ़रामोशी है मुझ पर रात-दिन तारी
मिरे ऐ दोस्त पढ़ मंतर मैं ख़ुद को भूल जाता हूँ